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राखी - एक अंतर्मन की कहानी

राहुल को आज का दिन बहुत ही भारी लग रहा था, मानो उसको किसी भारी पत्थर के नीचे दबा कर उसके समय को रोक दिया हो। एक एक पल बिताने में उसे एक एक घंटे का अहसास हो रहा था।  पहली बार उसको लग रहा था कि समय बीत क्यों नहीं रहा है, पहली बार उसे लग रहा था कि हे भगवान आज का दिन जल्दी से खत्म क्यों नहीं हो रहा। बेचैनी चरम पर थी। खुद को बहलाने के लिये कभी व्हाट्सअप की ओर रूख कर रहा तो कभी फेसबुक की तरफ पर वहां भी वही राखी के गाने व राखी मनाते हुये भाई-बहनों को देख कर वह और भी व्याकुल हुये जा रहा था। अब वह अपने रूम की बालकनी मे बाहर की तरफ ताक कर समय बिताने की कोशिश करने लगा ही था कि बाहर पैदल, बाइक पर, आटोरिक्शा पर, कार में सजे धजे हुये बहन-बेटियों को देख कर, उनके मुस्कुराते ऊर्जा से भरपूर चेहरों को निहार कर जागते हुये भी कहीं सपने में खोये जा रहा था। वह भी तो कभी बच्चा था उसके भी तो एक माजायी बहन थी - बहन क्या थी वह तो उसकी दोस्त, पथ प्रदर्शक, अभिभावक क्या नहीं थी सब कुछ ही तो थी। जब भाई इस दुनिया मे नहीं आया था तब ईश्वर के सम्मुख बैठकर भाई होने की दुआ किया करती थी, फिर वह शक्ति जहां कहीं भी है और...