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राखी - एक अंतर्मन की कहानी

राहुल को आज का दिन बहुत ही भारी लग रहा था, मानो उसको किसी भारी पत्थर के नीचे दबा कर उसके समय को रोक दिया हो। एक एक पल बिताने में उसे एक एक घंटे का अहसास हो रहा था।  पहली बार उसको लग रहा था कि समय बीत क्यों नहीं रहा है, पहली बार उसे लग रहा था कि हे भगवान आज का दिन जल्दी से खत्म क्यों नहीं हो रहा। बेचैनी चरम पर थी। खुद को बहलाने के लिये कभी व्हाट्सअप की ओर रूख कर रहा तो कभी फेसबुक की तरफ पर वहां भी वही राखी के गाने व राखी मनाते हुये भाई-बहनों को देख कर वह और भी व्याकुल हुये जा रहा था। अब वह अपने रूम की बालकनी मे बाहर की तरफ ताक कर समय बिताने की कोशिश करने लगा ही था कि बाहर पैदल, बाइक पर, आटोरिक्शा पर, कार में सजे धजे हुये बहन-बेटियों को देख कर, उनके मुस्कुराते ऊर्जा से भरपूर चेहरों को निहार कर जागते हुये भी कहीं सपने में खोये जा रहा था। वह भी तो कभी बच्चा था उसके भी तो एक माजायी बहन थी - बहन क्या थी वह तो उसकी दोस्त, पथ प्रदर्शक, अभिभावक क्या नहीं थी सब कुछ ही तो थी। जब भाई इस दुनिया मे नहीं आया था तब ईश्वर के सम्मुख बैठकर भाई होने की दुआ किया करती थी, फिर वह शक्ति जहां कहीं भी है और किस
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कोरोना - दरकते पारिवारिक रिश्ते

बात कुछ ज्यादा पुरानी नहीं....... कोरोना की पहली लहर खत्म हो ही रही थी और जन मानस पिछले काफी समय की घुटन से थोड़ा रिलेक्स अनुभव कर रहा था।...... आज युवराज ऑफिस से खुशी खुशी घर की तरफ ड्राइव कर रहा था, ऑफिस की थकान भी काफूर थी उस पर....क्यों न हो आज अपने परिवार के लिये नया आशियाना जो देखने जाना था।.... अपना आशियाना.....अपने सपनों का घर।......... घर छोटा होने के कारण अभी पिछले साल ही तो बाबूजी ने बच्चों की पढाई का वास्ता देकर अपनी तरफ से बीस लाख रूपये देकर विनय भाईसाहब को नये घर में शिफ्ट करवाया था।....... ’चलो चलो सब तैयार हो जाओ...हम ’सुमिरूद्ध सिटी’ में फ्लैट देखने चल रहे है।’ घर पहुंचते ही युवराज ने मां, बाबूजी, रूचि और विक्की से एक साथ ही कह दिया था। रूचि....युवराज की वाइफ ... तो मानो कई दिनों से इस दिन का इंतजार ही कर रही थी। युवराज को तुरन्त चाय का कप पकड़ाकर तैयार होने चली गयी। विक्की... युवराज का छोटा भाई...कुछ उधेड़बुन में दिखा...’भईया मैंने क्या करना जाकर, आप होकर आ जाइये.... मै घर पर ही रह लूंगा।’    मां-बाबूजी अपने बेटे की खुशी का मौका ताक ही रहे थे सो तुरन्त तैयार होकर आ गये।.

रिश्तों की मिठास - जीवन के साथ भी और जीवन के बाद भी

बात 8 जून के रात की है...........हाँ हाँ 8 जून ही थी........... सुमिरूद्ध अपने एक्टिवा पर घर की तरफ जा रहा था.......जा रहा था या अपने शरीर को ढो कर ले जा रहा था............क्योंकि उसका मन तो अभी भी पीछे 14/टाइप ।।। में छूटा हुआ था। सोचता हुआ जा रहा था कि ........ सुनाई देता था कि समय बड़ा बलवान होता है............पिछले कुछ सप्ताह में तो यथार्थ रूप में अहसास भी कर लिया था।  कोरोना से पहले सुमिरूद्ध की एकमात्र बहन का अचानक चले जाना। फिर छोटे भाई समान वीर सिंह का साथ छूटना। इन गमों से वह उबर ही रहा था कि राजवीर के आईसीयू में होने का पता चला। राजवीर जो कभी उसको एक दोस्त का अहसास कराता था पर कहीं न कहीं उसे बड़े भाई की इज्जत देता था। इस डबल रिश्ते की डोर ने सुमिरूद्ध को आईसीयू तक खींच लिया था। चार दिन ..........बस चार दिन के आईसीयू में साथ के बाद राजवीर सुमिरूद्ध से हमेशा के लिए दूर हो गया। प्रभा ....... राजवीर की वाइफ ......सुमिरूद्ध की दोस्त तो पहले ही उन्हें छोड़ चुकी थी। समय, भगवान, लॉक डाउन सुमिरूद्ध को नई जिम्मेवारियों का अहसास करवा रहे थे। अब उसने यह निश्चित कर ही लिया था कि उसमें माद्द