बात कुछ ज्यादा पुरानी नहीं....... कोरोना की पहली लहर खत्म हो ही रही थी और जन मानस पिछले काफी समय की घुटन से थोड़ा रिलेक्स अनुभव कर रहा था।......
आज युवराज ऑफिस से खुशी खुशी घर की तरफ ड्राइव कर रहा था, ऑफिस की थकान भी काफूर थी उस पर....क्यों न हो आज अपने परिवार के लिये नया आशियाना जो देखने जाना था।.... अपना आशियाना.....अपने सपनों का घर।......... घर छोटा होने के कारण अभी पिछले साल ही तो बाबूजी ने बच्चों की पढाई का वास्ता देकर अपनी तरफ से बीस लाख रूपये देकर विनय भाईसाहब को नये घर में शिफ्ट करवाया था।....... ’चलो चलो सब तैयार हो जाओ...हम ’सुमिरूद्ध सिटी’ में फ्लैट देखने चल रहे है।’ घर पहुंचते ही युवराज ने मां, बाबूजी, रूचि और विक्की से एक साथ ही कह दिया था। रूचि....युवराज की वाइफ ... तो मानो कई दिनों से इस दिन का इंतजार ही कर रही थी। युवराज को तुरन्त चाय का कप पकड़ाकर तैयार होने चली गयी। विक्की... युवराज का छोटा भाई...कुछ उधेड़बुन में दिखा...’भईया मैंने क्या करना जाकर, आप होकर आ जाइये.... मै घर पर ही रह लूंगा।’ मां-बाबूजी अपने बेटे की खुशी का मौका ताक ही रहे थे सो तुरन्त तैयार होकर आ गये।....कार ’सुमिरूद्ध सिटी’ की तरफ सड़क पर सरपट भागी जा रही थी और उधर भावनाओं का ज्वार चारों के मनरूपी समुद्र में हिलोरे मार रहा था। ......
परिवार की आवश्यकता देख 3 बीएचके यूनिट....ए/312...सब को पसंद आ गयी थी। मां-बाबूजी फूले नहीं समा रहे थे,,,,’ये ईस्ट की तरफ बालकनी वाला रूम तो मैं अपने पास ही रखूंगा युवी, क्या है न सुबह सुबह यहीं बालकनी में योगा करना बहुत अच्छा रहेगा’... बाबूजी के मुंह से अचानक ही निकल पड़ा था। रूचि तो किचन और उसमें लगे मोड्यूलर सेल्फ्स को देखकर ही खुश थी।
.....युवराज ने तय कर लिया था कि बैक मे जमा पैसा, फिक्सड डिपोजिट, हाउस लोन व बाबूजी की जमापूंजी से यह सुख तो पूरे परिवार को नसीब हो जायेगा, और बाकी की जिंदगी में तो पैसा कमाना ही है। खुशियों के रथ पर सवार चारों घर लौट आये।..... घर आये तो विनय भाईसाहब अपने परिवार के साथ घर पर आये हुये थे, रात को सबने मिल कर हंसी-ठिठोली करते हुये डिनर किया।
भाईसाहब को छोड़कर युवराज व रूचि अपने कमरे मे आ गये थे। ’रूचि आज मै बहुत खुश हूं, मेरा भी घर होगा जहां हम सब प्यार से रहेगे’ युवराज रूचि को अपनी बांहों में उठाकर घुमाते हुये बोला। ’अच्छी नींद तो आ जायेगी न आज, कि फ्लैट के ख्चाबों में ही रात गुजारोगे’ रूचि ने भी चुटकी लेते हुये बोल ही दिया।
सुबह हुयी.... एक नयी सुबह....’अजी... अभी भी फ्लैट में ही हो या घर आ गये, आज नींद नहीं खुल रही क्या, योगा-प्राणायाम कुछ नहीं आज?.... युवराज आज बदन में कुछ हरारत महसूस कर रहा था, पता नहीं आज उठने का मन नहीं हो रहा था। जैसे तैसे उठा और तैयार होकर ऑफिस की तरफ रवाना हो गया। आज ऑफिस के काम में भी मन नहीं लगा, शाम को घर आते ही...... ’रूचि यार चाय के साथ डोलो टेबलेट भी दे देना, कुछ बदन दर्द और बुखार सा महसूस हो रहा है।’....रूचि ने चाय व टेबलेट पकड़ायी फिर तपाक से बोल पड़ी ’युवी ध्यान रखो अपना प्लीज, ऑफिस के और घर के टेंशन में अपना ध्यान नहीं रख पाते हो। इतना भी क्या।’...... रूचि ने बोलना खत्म किया ही था कि बाबूजी बोल पड़े ’बेटा मैं तो कहता हूँ कि कल कोरोना का टेस्ट करवा ही लो। डर दूर हो जायेगा।’ .......’अरे बाबूजी कोरोना अब कहां। और फिर मैं तो नियमित योगा-प्राणायाम करता हूँ, मुझे कोरोना नहीं होगा। ये तो काम के बोझ की खुमारी है। दवाई लूंगा तो ठीक हो जाऊंगा। फालतू में गलती से टेस्ट पॉजिटिव आ गया तो 14 दिन का क्वारंटीन और रहना पड़ेगा।’ युवराज ने अपने मन की बात कह डाली।
अगले चार दिन तक इसी तरह चलता रहा, युवराज का बुखार कभी टूट रहा था तो कभी वापस आता जा रहा था। युवराज को हालांकि अंदर ही अंदर कोरोना होने की आशंका हो रही थी इसलिये घरवालों से उसने दूरी बढा ली थी। युवराज की तबियत दिन प्रतिदिन बिगड़ती जा रही थी और अब वह थोड़ी थोड़ी कमजोरी सी महसूस करने लग गया था।.... युवराज की हालत देख रूचि आज जबरदस्ती डॉक्टर के पास ले गयी, डॉक्टर को दिखाने पर उसने तुरन्त सीटीस्केन करवाने को कह दिया, युवराज ने सीटीस्केन करवाया तो सीटी स्कोर 16 आ गया, डॉक्टर ने युवराज को तुरन्त किसी अच्छे हॉस्पिटल में भर्ती होने की सलाह दे दी। युवराज को कोरोना पॉजिटिव रिपोर्ट की तो आशंका थी पर सीटीस्कोर 16 आयेगा इसका उसे अंदेशा नहीं था। युवराज के तो पैरों तले जमीन खिसक गयी, उसे काटो तो खून नहीं। पर किसी तरह उसने अपने आपको सम्हाला कि नहीं मुझे तो जीना है, अपने परिवार के लिये, रूचि के लिये। रूचि भी युवराज की रिपोर्ट देखकर निढाल हुयी जा रही थी पर युवराज की मनोदशा देखकर खुद को सम्हाल रही थी। रूचि ने तुरन्त पर्स से मोबाइल निकाल कर विनय भाईसाहब को कॉल लगाया और रूंधे गले से बोली ...’भाईसाहब..ये कोरोना पॉजिटिव आ गये हैं और इनको तुरन्त किसी हॉस्पिटल में भर्ती करवाना है। आप पता करके इनको किसी अच्छे हॉस्पिटल मे भर्ती करवाइये प्लीज। भाईसाहब अब आपका ही सहारा है हमें। हम तब तक घर जाकर सामान पैक कर लेते हैं’ बात करते करते आँखों में आये आंसू को पोछने के लिये रूचि क्लिनिक से बाहर आ गयी थी।.
घर मे मां का खबर सुनकर बुरा हाल था ’हे भगवान मेरे युवी को कुछ नहीं होना चाहिये’। बाबूजी भी गुमसुम से कभी रूचि को सामान पैक करते हुये देख रहे थे तो कभी पोर्च में बैठे अपने युवी को। विक्की खबर सुनकर भी अभी तक घर नहीं पहुचा। रूचि सब तैयारी कर चुकी थी पर भाईसाहब का अभी तक कॉल नहीं आया तो उसे बैचेनी होने लग गयी। इसी बैचेनी में उसने तुरन्त भाईसाहब को कॉल लगाया......’बहू...हां मैं तुमको कॉल लगा ही रहा था कि तुम्हारा कॉल आ गया। बहू ’श्योर क्योर हॉस्पिटल’ में बात की थी वहां बेड अवेलेबल नहीं बता रहे थे फिर किसी एजेण्ट से बात की तो अब उसमें एक बेड का इंतजाम हो जायेगा पर वो अभी एडमिशन पर दो लाख रूपये मांग रहे हैं और वो भी कैश जिसकी वे कोई रसीद भी नहीं देंगे। तो ऐसा करना तुम कि दो लाख रूपये का बंदोबस्त भी करते आना। तुमको तो पता है न हमने पिछले साल ही यह मकान खरीदा था तो अभी फाइनेंशियल पोजिशन थोड़ी टाइट है।’ ......रूचि को युवी के पॉजिटिव आने की खबर के बाद ये दूसरा झटका लगा। अचानक इतने ज्यादा रूपयों का इंतजाम कहां से करे ये सोच ही रही थी कि उसे ध्यान आया कि इन्होने फ्लैट के एडवांस के लिये रूपये निकाले हुये थे तो उसमें से गिनकर दो लाख रूपये पर्स में रख लिये।
विक्की कॉल पिक नहीं कर रहा था तो रूचि ने खुद कार निकाली और युवी को लेकर ’श्योर क्योर हॉस्पिटल’ की तरफ चल पड़ी। विनय भाईसाहब का रेफरेंस देकर पैसा जमा कर कोरोना जनरल वार्ड में बेड नं. 9 पर युवराज को लिटा दिया। नर्सिंग स्टाफ ने भी तुरन्त आकर युवराज को अटेंड कर लिया। रूचि ग्लव्ज व मास्क पहन कर युवराज को ढाढस बंधाने में लगी हुयी थी।
’युवी....मैं ऐसा करती हूँ कि घर जाकर खाना बना कर तुम्हारा खाना लेकर विक्की को रात के लिये भेज देती हूँ’......’नहीं नहीं रूचि...विक्की यहां आकर क्या करेगा। मेरा खाना तो यहां हॉस्पिटल से मिल जायेगा, विक्की को क्यों परेशान कर रही हो’ युवराज ने तपाक से जवाब दे दिया।.... ’घर का खाना तो घर का होता है...देखती हूँ विक्की को कम से कम खाना खिलाने तो भेज ही दूंगी’ ऐसा कह कर रूचि नर्सिंग स्टाफ को ताकीद करके घर की ओर चल दी। घर में आकर नहा-धोकर तुरन्त खाना बनाने पर लग गयी और विक्की को आवाज लगा कर बोली ’विक्की खाना लेकर जाना और अपने भइया को हॉस्पिटल में खाना खिलाकर आ जाना’। खाना बनते ही रूचि ने फिर विक्की को आवाज लगायी...’विक्की खाना पैक कर दूं क्या ?’... विक्की भाभी के पास आकर बोला ’भाभी मैं ये कह रहा था कि मैं जाना तो चाहता हूँ पर मैं मां-बाबूजी के साथ कमरे में ही रहता हूँ तो मेरा हॉस्पिटल जाना ठीक नहीं...कोरोना लेकर न आ जाऊं... फिर मां-बाबूजी भी बुजुर्ग है’ ऐसा कह कर विक्की ने हॉस्पिटल जाने से असहमति जता दी थी।

अगले दिन सुबह रूचि जल्दी से उठ कर नहा धोकर फटाफट नाश्ता बना कर युवराज के पास पहुंच गयी। युवराज का आज ऑक्सीजन लेवल 90 तक आ जाने पर उसे ऑक्सीजन मास्क लगा दिया गया था। रूचि वार्ड मेंं पहुंचते ही युवराज की ऐसी हालत देखकर नाश्ता रखकर युवराज से अपना टेंशन छुपाते हुये नर्सिंग स्टाफ के पास तेज कदमों से पहुंची और युवराज की हालत के बारे मे आंखों से आंसू पोछते हुये पूछने लगी।...... ’मेडम कोरोना लंग्स में इफेक्ट कर रहा है तो इसमें ऑक्सीजन मास्क तो लगाना ही पड़ता है। ये नॉर्मल प्रॉसिजर है।’.....
नर्स ने रूचि को आश्वस्त करने की कोशिश की। युवराज को नाश्ता कराना खत्म किया ही था कि विनय भाईसाहब का कॉल रूचि के मोबाइल पर आया और उससे हॉस्पिटल की व्यवस्थाओं की जानकारी लेने के बाद बोले कि बहू मै और सीमा हॉस्पिटल आ ही जाते पर तुम जानती हो कि मैं हाइ बीपी और डाइबिटीज का मरीज हूँ और सीमा भी थायरॉइड की मरीज है तो ऐसे समय में हॉस्पिटल में हमारा आना ठीक नहीं रहेगा फिर बच्चे भी अभी छोटे है। पर कोई भी काम हो तो बताते रहना।........ रूचि को तो ऐसा लगा मानो किसी ने इंजेक्शन चुभाकर उसकी सारी एनर्जी एक ही झटके में खींच दी हो।.... पर उसने भी अब तय कर लिया था कि वह अकेली ही युवराज की शक्ति बन कर उसे इस जंग से बाहर निकालेगी। युवराज ने पूछ ही लिया क्या कह रहे थे भाईसाहब वो आयेंगे यहां। रूचि अनमने ढंग से बोल पड़ी पता नहीं। अब रूचि अकेली ही घर में व हॉस्पिटल में सामंजस्य स्थापित कर युवराज की देखभाल कर रही थी
पर युवराज एक तरफ रूचि को और दूसरी तरफ अपने परिवार को देख कर मन ही मन दुखी हुये जा रहा था कि क्या ये बीमारी इतनी खतरनाक है कि खूनी रिश्ते की डोर इतनी ढीली पड़ गयी कि अपने दूसरे छोर पर नजर आ रहे है और रूचि और मैं इस छोर पर। अपने परिवार के होते हुये भी वह अब नितान्त अकेला महसूस कर रहा था। अब क्या होगा उसके सपनों का, अपने परिवार को जो खुशियां देना चाह रहा था, अगर मै मर गया तो रूचि का क्या होगा, न जाने क्या क्या नकारात्मक खयाल अचानक से युवराज के दिमाग में घर करने लग गये थे। अपनों की बेरूखी के कारण अब उसमें जीने के प्रति भी नकारात्मकता आनी शुरू हो गयी थी जिसका असर उस पर कोरोना की बढती ताकत के रूप में नजर आ रहा था। अब उसका ऑक्सीजन लेवल भी दिनोदिन गिरना शुरू हो गया था। कमजोरी के कारण उसका मन अब रूचि से भी बात कम करने का हो गया था। आज युवराज का ऑक्सीजन लेवल 65-70 तक आ गया था। युवराज की हालत देख कर रूचि ने विनय भाईसाहब को फोन लगाया कि ’इनकी हालत ठीक नहीं है आप आईसीयू में बेड का इंतजाम करवा दीजिये’।.....शाम होते होते युवराज की बैचेनी बढनी शुरू हो गयी थी, ऑक्सीजन भी अब हाईफ्लो पर कर दी गयी थी।.....
रूचि बेतहाशा रिसेप्शन की तरफ भागी और उनसे विनती करने लगी कि ’प्लीज युवराज को आईसीयू में शिफ्ट कर दीजिये।’..... ’मेडम आईसीयू में अभी कोई बेड खाली नहीं है, हम क्या कर सकते हैं। इतना कर सकते है कि उनके बेड पर ही सारी व्यवस्थाएं देने की कोशिश करते है।’ रिसेप्शनिस्ट ने स्थिति से अवगत करा दिया। ......रूचि ने सोच लिया था कि आज की रात युवराज पर भारी रहेगी तो आज उसे उसके पास ही यहीं रहना होगा। बड़े हिम्मत करके मां को फोन लगा कर कह दिया कि आज इनको आईसीयू में शिफ्ट करेंगे तो मै यहीं हूँ इनके पास।...... युवराज की हालत अब और खराब हो रही थी, अब वह रेस्पान्स भी कम कर रहा था। नर्सिंग स्टाफ व डॉक्टर्स की गतिविधियां भी युवराज के आसपास अब बढ गयी थीं। किसी बात की आशंका को देखते हुये डॉक्टर ने रूचि से पूछ ही लिया आपके साथ कोई मर्द नहीं है क्या?..रूचि को कोई जवाब देते हुये नहीं बन रहा था। रूचि ने देखा कि युवराज की सांसें तेजी से चलना शुरू हो गयीं थीं। ’डॉक्टर..डॉक्टर...देखिये न उन्हें क्या हो रहा है’ रूचि जोर से चिल्ला कर बोली। ’हम अपनी तरफ से पूरे एफर्टस कर रहे हैं’ डॉक्टर ने इतना सा जवाब भर दिया।
रूचि भाग कर वापस युवराज के पास आयी और ऑक्सीजन मास्क पकड़कर खड़ी हो गयी पर युवराज का समय अब आ चुका था और सांस चलते चलते अचानक ही उखड़ गयी। डॉक्टर पल्स रेट देख रहे थे और ईसीजी लेने की तैयारी कर रहे थे कि रूचि जोर जोर से ’युवी...युवी.. तुम मुझे छोड़कर नहीं जा सकते ......नहीं जा सकते’ चिल्लाती चिल्लाती बेहोश हो गयी।
डॉक्टर रूचि को होश में लाने की कोशिश करते हुये नर्स से कहने लगे कि इनके घर पर तुरन्त फोन करके किसी को बुलाओ ताकि डॉक्यूमेंट्स पर साइन कर सके और युवराज की वाइफ को घर ले जा सके। हॉस्पिटल से विनय भाईसाहब को कॉल करके बुलाया गया। डेड बॉडी के डॉक्यूमेंट्स पर साइन करवा कर उन्हें कह दिया कि बॉडी के लिये कल आ जाना बॉडी यहां से सीधे श्मशान घाट ही जायेगी। ......अफसोस विनय भाईसाहब भी तब आये जब युवराज युवराज न रहा बॉडी बन गया था।
उफ्फ....उफ्फ...!!!!! कोरोना हारता है.... क्यों नहीं हारता है। जरूर हारता है...हमारे मानसिक सम्बल से, हमारी इच्छा शक्ति से.... हम भारतीय, अभी भी पारिवारिक व्यवस्था में रहने के आदी हैं। .......अभी भी हमारा सामाजिक जीवन, हमारे पारिवारिक रिश्ते हमारी ताकत है, .....अभी भी हमें दुख कम करने के लिये किसी अपनों के कंधों का इंतजार होता है .........भारत में दूसरी लहर में कोरोना अगर मजबूत हुआ है तो इसीलिये कि हमारी सामाजिक व्यवस्था, हमारे पारिवारिक रिश्ते कोरोना के आगे तार-तार हो गये। ऐसे कई युवराजों की मौत का जिम्मेवार कोरोना नहीं...हमारे पारिवारिक रिश्ते हैं जो अगर कोरोना के सम्मुख मजबूत रहे होते तो शायद युवराज आज जिन्दा होता।..........
एक दम सही लिखा है संजू
जवाब देंहटाएंज़िंदगी एक प्यारा सा रिश्तों का बंधन(BOND) है और हमें उन्हें संजो के रखना है ….,,.जीने के लिए 😍😍
शुक्रिया रचू....👍
हटाएंHeart touching....❤
जवाब देंहटाएंकोशिश की थी शब्दों से हार्ट तक पहुंचने की..... सफल रहा फिर तो..
हटाएंSo so true!!💯
जवाब देंहटाएंIt's life's experience... इसीलिये ये ब्लॉग लिखा...😘😘
हटाएंबहुत ही सुन्दर लिखा है सन्जूजी 👌🙏
जवाब देंहटाएंहार्दिक शुक्रिया गुरु जी...🙏
हटाएंसुन्दर!
जवाब देंहटाएंशुक्रिया.....🙏
हटाएंBeautiful Presentation of Harsh Truth....
जवाब देंहटाएंClass...No one can believe you just started writing...Class
Thanks a lot for this analysis.....🙏
हटाएंबहुत बढ़िया, रिश्तों के दरकने का सजीव चित्रण
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत दिल से शुक्रिया...🙏
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया...👍
हटाएंVery heart touching..,. family is first priority but friends circle is also must.
जवाब देंहटाएंThanks a lot...🙏
हटाएंमन को छूने वाली आज के समाज की दास्ताँ और एक सच्चाई जो कोरोना सामने लाया है इससे रिश्ते दरक गये है | सामाजिक जीवन, हमारे पारिवारिक रिश्ते हमारी ताकत है जहाँ जहाँ ये रिश्ते मजबूत रहे हैं वे इस आपदा से उबरे हैं | बहुत ही अच्छा लिखा हैं आपने |
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया कुसुम...पिछले कुछ सप्ताह के अनुभव के आधार पर ही यह ब्लॉग बना है।
हटाएंNice work
जवाब देंहटाएंशुक्रिया...🙏
हटाएंTdy
जवाब देंहटाएं.. रूचि को तो ऐसा लगा मानो किसी ने इंजेक्शन चुभाकर उसकी सारी एनर्जी एक ही झटके में खींच दी हो।....
जवाब देंहटाएंऐसे कई युवराजों की मौत का जिम्मेवार कोरोना नहीं...हमारे पारिवारिक रिश्ते हैं जो अगर कोरोना के सम्मुख मजबूत रहे होते तो शायद युवराज आज जिन्दा
होता।..........
बहुत ही सजीव चित्रण रिश्तो का आपने किया है सर। जिनको अपन अपने समझते है, वे ही कठिन समय पर दुरियाँ बना ले, तो दुसरो से क्या उम्मीद करे।
लोग कहते है, अपने तो अपने होते है। लेकिन कई बार यह सच नही है। आपकी भावनाओंकी कद्र करते है। आपने यह भावनाप्रदान लेख लिखकर समाज को सिख दी है। इससे समाजिक भावनाओं को समझा जा सकेगा।
प्रणाम
प्रमोद टेकोडे राजीव नगर बासनी।
बहुत बहुत शुक्रिया भाईसाहब...🙏
हटाएंकटु सत्य!परंतु यह आपदा काल है और आपद्धर्म सामान्य से अलग होता है। कोरॉना अत्यधिक संक्रामक है,पूरे के पूरे परिवार इसकी चपेट में आए हैं।ऐसा भी हुआ है कि 75, 80सालके बुजुर्ग ठीक हो गए और उनकी सेवा करने वाले 30,35 वर्ष के युवा काल के गाल में समा गए इसलिए इस विकट परिस्थितियों में कोई निष्कर्ष निकालना उचित नहीं होगा ऐसा मैं समझती हूं
जवाब देंहटाएंलेखक ने एक पक्ष को रख कर अपनी बात कही है...कोरोना के समय और भी कारण रहे हैं मरीजों के जिंदा रहने और चले जाने के, उससे मना नहीं किया जा सकता। आपका अपना पक्ष है जिसे स्वीकार करते हैं। 🙏
हटाएंThankyou so much for writing the truth!!
जवाब देंहटाएंशुक्रिया...🙌😘
हटाएंYe is kalyug ka kattu satya h, jb bhi vipda aayi h apno ne hi sath.pahle chhoda h, dusre to phir bhi sath nibha jate h, ye to bs ek mahamari ka naam diya h, nibhane wale to kuch bhi krke rrishty nibha hi jate h, me is katu satya se gujer chuki hu, bt musibat.ka time hi apne parye ki pahchan kerta h.isliye pareshaniya aani bhi jaruri h bahut hi sundar shabdo me samjhaya h rishto ot bhavnao ko aapne
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया आपका..🙏..भगवान आपको भी शक्ति दे
हटाएंVery touching
जवाब देंहटाएंThanks a lot...👍
हटाएंबहुत से रिश्तेदार तब पहुँचते है जब उसको सुनने वाला रहा ही नहीं। लेकिन इस बीमारी ने दिखावा करने के लिए मरने के बाद आने वालों की परीक्षा ले ली। सचमुच, रिश्तों की बुनियाद पर लिखी जाने वाली हज़ारों कहानियों में अब बहुत से नये अध्याय जोड़े जाएंगे
जवाब देंहटाएं🙏🙏🙏
हटाएंDil ko छु गये आपके शब्द। बहुत ही अच्छी लेखनी है आपकी।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया लक्की...👍🙌😍
हटाएंसहज, सरल, सादाबयानी, जो अपने प्रवाह में आपबीती के दर्द को सहलाती है, और आत्मनिरीक्षण पर भी मजबूर करती है।
जवाब देंहटाएंदुनियाँ को आप जैसे ढेर सारे संवेदनशील लोगों की ज़रूरत है, जो त्रासदी के दुख को सृजन में ढालना सिखा सकें। 🙏🏼🌹
बहुत प्यारी टिप्पणी की है भाई....बहुत बहुत शुक्रिया इतने सुंदर शब्द प्रयोग के लिए...😍
हटाएंRishton ki door majbut hotei to aaj yuraj jinda hota
हटाएंअति सुन्दर, सरल शब्दों में रिश्तों की सच्चाई को उजागर किया है। खुश रहो , परमात्मा शक्ति दे।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया..🙏..आपकी दुआओं के लिए भी ...🙏🎉🎊
हटाएंआज के इस कोरोना काल मे इस कहानी की तरह सेकड़ो सत्य घटनाएं घट चुकी है , जो हम सब ने देखा भी है और महसूस भी किया है। लेखक की कलम और
जवाब देंहटाएंअपने आस पास घटित होती घटना लगी। लेखक की कलम और शब्दों ने कुछ पल तक भावुक किया। पर पढ़ते पढ़ते मैं सोच रहा था कि लेखक अंत मे एक नारी की श्रद्धा , मेहनत और संघर्ष को विजयी बना कर इन दरकते रिश्तों को एक जवाब देती और आज समाज मे रुचि जैसी कितनी बहने आज भी ऐसे दरकते और बहकते रिश्तों के बिना अपने अपने सत्यवान को बचाने की कोशिश में लगी है। इस कहानी का सुखदायी अंत ऐसी बहनों का संबल बनती और बनावटी रिश्तेदारों को सबक मिलता।
पर लेखक का अपना मनोभाव है जिसे लिख कर उसने पूरा इंसाफ किया है।
आज के समाज के लिए दर्पण है ।
लिखते रहो भाई , ।
@दगड़या
लेखक के परिदृश्य में कोरोना के कारण पारिवारिक रिश्तों के खोखलेपन को सामने लाना प्राथमिकता थी। युवराज की मौत से वो खोखलापन पाठकों को अंदर तक हिला गया। रूचि की जीत से वह श्रद्धा और संघर्ष प्राथमिक हो जाता, पाठक उस जीत की खुशी में पारिवारिक रिश्तों में ह्यास को कहीं दरकिनार कर सकता था। आपके दृष्टिकोण की भी हम कद्र करते हैं। बहुत सुंदर विवेचना भाई.... आपकी शुभकामनाओं के लिए शुक्रिया 🙏😍
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